कैसा है.. यह नाते पर नाता...?
Thursday, 15 April 2010
- By Unknown
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कविता कोष
कैसा है.. यह नाते पर नाता...?
निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,
फिर भी अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद में जनम ले रहा.. नाता नया जनम के बाद,
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता,
है कितना अपनापन.. समाया होता इसमें भी,
हर रोज़ है आती.. एक नयी हरकत भोली मासूम,
जुड़ता हर रोज़.. एक नया अहसास भी...
है कैसी विडम्बना.. कैसा है.. यह नाते पर नाता,
बनने के बाद बनाना पड़ता.. फिर एक नया नाता...
_____जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 23 march 2010 ___ 04:41pm )
( कुछ लोग कहते हैं कि एक baby के लिए माँ ही सारी दुनिया होती है..... पर मेरा कहना है की यह सब बाद की बातें हैं... newly born baby को किसी और को माँ बना कर हवाले कर दो जो उसे माँ जैसा ही प्यार करे... फिर six month के बाद वो उसे ही अपना समझेगा, ना की अपनी माँ को... ऐसा ना होता तो कृष्ण को देवकी अपनी लगती और यशोदा परायी...वैसे मेरा ये देखा हुआ भी है कई बार, वो भी खुद अपनी ही आँखों से... आप चाहें तो आप भी try कर लीजियेगा, अगर कभी मौका मिले तो...)
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Comments
2 Responses to “कैसा है.. यह नाते पर नाता...?”
Only the baby and the mother or the foster mother can understand the pure love between the two.
yes you are absolutely right @ Aparna...
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