नहीं बस,
यूँ ही...!!
सोच रहा था,
आज या फिर कल,
कम से कम एक बार,
बात कर लेता,
पर कोई बात नहीं,
मुझे पता है अच्छी तरह,
कि मेरे और उसके बीच,
कहीं कुछ ठीक नहीं होना,
फिर भी,
जो तू ठीक समझे.. कर,
ये तेरी लाइफ है,
मेरी प्रोब्लम्स मेरे ही साथ रहने दे,
जो मन में है,
उसके साथ ये भी पता है कि,
हकीक़त क्या है,
सपना सिर्फ देखने के लिए होता है,
जागने के बाद कोई सपना नहीं होता,
फिर तो वही सब होता है,
जिससे भाग कर सपना देखा था,
तू फिकर न कर..
मुझे आदत है,
अब तो पक्का भी हो गया हूँ,
चमड़ी भी मोटी होती जा रही है,
फीलिंग्स भी मरती जा रही थी,
पर तू आ गयी,
कोई बात नहीं..
अब थोड़ी सी तकलीफ और सही,
चलता है,
अब तो आदत सी हो गयी है,
ये ही तो होता है जीवन,
जाने दे,
तू ज्यादा ना सोच,
तू क्यूँ पतली होती है.. मेरे जैसे स्टुपिड के लिए,
अब तू ना ही सोच.. मेरे लिए,
अकेला था मैं.. मरना भी अकेले ही होगा मुझे,
अलविदा.............................................................
____________जोगेंद्र सिंह ( 27 मार्च 2010 ___ 09:45 pm )
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( दोस्तों जिसे आप कविता समझ रहे हैं वो कोई कविता या कोई साहित्य नहीं है... और न ही इसे किसी टिपण्णी ही की दरकार है... क्यूंकि मन की असली भावनाओं को सांत्वना के सिवा किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं होती... बस यूँही बैठे मन में अपनी ज़िन्दगी के ताज़े हालात आ रहे थे... सो वे सारे हालात लिख डाले, बिना किसी सुर-ताल के... जिस क्रम में वे आये उसी क्रम में लिखता गया, बिना उन्हें सजाए संवारे... गलती मुझसे यह हुई कि इसे पोस्ट क्यूँ कर दिया मैंने... लोग मन की बात छुपा कर रखते हैं... पर शायद कुछ "गधे" मेरे जैसे भी होते हैं, जो अपने ही हाथों अपने ही भावनाओं का मजाक उडवाते हैं... पर फिर भी "धन्यवाद" आप सभी का... कि चाहे किसी ने मेरे दिल को न समझा पर लोग मेरे करीब तो आये....)
nahin bas,
yun hi...!!
soch raha tha,
aaj ya fir kal,
kam se kam ek baar,
baat kar leta,
par koi baat nahin,
mujhe pata hai achchhi tarah,
ki mere aur uske beech,
kahin kuchh theek nahin hona,
fir bhi,
jo tu theek samjhe.. kar,
ye teri life hai,
meri problems mere hi saath rahne de,
jo man main hai,
uske sath ye bhi pata hai ki,
haqiqat kya hai,
sapna sirf dekhne ke liye hota hai,
jaagne ke baad koi sapna nahin hota,
fir to vahi sab hota hai,
jisse bhag kar
sapna dekha tha,
tu fikar na kar.. mujhe aadat hai,
ab to pakka bhi ho gaya hun,
chamdi bhi moti hoti ja rahi hai,
feelings bhi marti ja rahi thi,
par tu aa gayi,
koi baat nahin.. ab thodi si thklif aur sahi,
chalta hai,
ab to aadat si ho gayi hai,
ye hi to hota hai jeevan,
jaane de,
tu jyaada na soch,
tu kyun patli hoti hai.. mere jaise stupid ke liye,
ab tu na hi soch.. mere liye,
akela tha main.. marna bhi akele hi hoga mujhe,
alvida.............................................................
____________Jogendra Singh ( 27 March 2010 ___ 09:45 pm )
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Comments
2 Responses to “नहीं बस, यूँ ही...!!”
Sometimes personal emotions are so powerful that they drift the readers along with them and the reader, the writer become one.
yes Aparna ji you are right...
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