तुम पूछों और मै न बताऊँ
Saturday, 24 April 2010
- By Unknown
Labels:
कविता कोष
तुम पूछों और मै न बताऊँ, जीवन में अभी ऐसे हालात नहीं !
हुआ ही क्या है ज़रा दिल ही तो टूटा है कोई पहाड़ तो नहीं !
अब दिल ना दुखाओ तुम अपना यह मेरी अक्सर की बात है !
कभी अगर स्वप्न संजो भी लूँ तुम्हें पाने का..मेरा हक है यह !
किसी मानुष का अपने ख्वाबों पर भी भला बस चला है कहीं ?
सकून नज़रों का बन..मचलती हो स्वप्न-लोक की दुनिया में !
पलक झपकते आना-जाना तुम्हारा नींद-ओ-हवासों का फर्क है !
इसी से लगती नींद प्यारी.. दिखते बाकी सब हवास गलीज़ हैं !
__________जोगेंद्र सिंह ( 24 अप्रैल 2010__03::25 )
( यह कविता मेरे निजी जीवन के अपने खुद के अनुभव पर है...)
( प्रेरणा स्वरुप पहली पंक्ति की आधी लाइन कहीं से ली गयी है...)
(( Follow me on facebook >>> http://www.facebook.com/profile.php?id=100000906045711&ref=profile# ))
.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Comments
4 Responses to “तुम पूछों और मै न बताऊँ”
Very Nice Sir Ji.............:)
The poem is a sad note of one's life. But one cannot live the whole life lingering between dreams. Dreams are short lived. You are a poet of Hopes. Then why this dejection is reflected here?
thanx ◊▬►► Rakss...
thanx ◊▬►► Aparna ji... reason for dejection is dat dis is a different flavour of life...
जोगी जी आपकी यह कविता दिल को छु गयी ...खाश तौर पर ये पंग्तियाँ ...
अब दिल न दुखाओ तुम अपना यह मेरी अक्सर की ही बात है ....
किसी मानुष का अपने ख्वाबों पर भी भला बस चला है कभी...
बहुत शुभकामनायें ..
Post a Comment
Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।
▬● (my business sites..)
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://web-acu.com/
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://acu5.weebly.com/
.