तेरी याद..
Tuesday, 27 April 2010
- By Unknown
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चित्र बोलता है
अब भी जीने को तेरी यादों का सहारा है...
नहीं ज़रूरत मुझे झूठे सहारों की है...
तो क्या हुआ दूर अगर किनारा हो...
तैर कर इसे भी पार कर जाना है...
◄◄▬◊ ..Jogi.. ◊▬►►
( 26 अप्रैल 2010___10:40 am )
(( उपरोक्त चित्र में अंगड़ाई लेती एक अस्पष्ट सी लड़की है जिसे मैंने अपने मन में बसे ख्वाबों की रोज़ आती यादों के प्रतीक के रूप में लिया है ! जिस प्रकार प्रेम में लिप्त मनुष्य को कुछ भी समझ नहीं आता है, ठीक उसी प्रकार मेरा नायक भी बाकी हर चीज़ या बातों को झूठे सहारों की तरह से ले रहा है ! अब चूँकि बात यादों की हो रही है तो ज़ाहिर सा है की उसे अपना प्रेम मिला नहीं है या फिर अगर मिला भी है तो वह अभी उसकी पहुँच में नहीं है ! इस चित्र में दिखाए सागर को इस तरह से लिया गया है कि जो प्रेम अभी उसकी पहुँच में नहीं है उसी को पाने के लिए वह सभी अवरोधों के अथाह सागर को तैर कर पार कर जाना चाहता है ! ))
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Comments
2 Responses to “तेरी याद..”
Jogi hw can you write so beautifully! It is stunning! I do not find words to express myself. pl. keep writing such beautiful poems.
love this.
thank you Aparna...
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