एक सुबह..जब देखा मैंने आँखें खोल कर
बरांडे से आती आवाजें महसूस होने लगीं
कौन आया कदमों की चाप भी जता देती है
शरीर से ज्यादा कान सक्षम नज़र आते हैं
गुज़रे कुछ दिन पहले ही की तो बात है यह
बरांडे से आती आवाजें महसूस होने लगीं
कौन आया कदमों की चाप भी जता देती है
शरीर से ज्यादा कान सक्षम नज़र आते हैं
गुज़रे कुछ दिन पहले ही की तो बात है यह
खाना खाने ऊपर जाते मेरे क़दम फिसले थे
कमज़ोर पड़ा हूँ अब फालिज़ से ग्रस्त होकर
जीवन भर न हुआ अब पड़ा हूँ आश्रित उनके
लकवाग्रस्त सी लगती अब आत्मा भी है मेरी
आने-जाने वालों की अब लगी है रेलम-पेलम
दो बात सुना चल देते हैं गीत अपने गा-गाकर
दर्द घटा या बढ़ा मर्म इसका यहाँ जानेगा कौन
घूमता हूँ अब भी गाँव में पहले ही की तरह से
हो आता हूँ हर जगह.. रह जाता है पीछे शरीर
मन कहाँ माध्यम चाहे घूम आता यूँही कहीं
नाई की छोटी दूकान हो या हो कल्लू हलवाई
टूट जाते दिवा स्वप्न चारपाई की चर-चर से
कुछ कहने की आस में खाँस के रह जाता हूँ
रात बात होती है.. बीच दीवार घडी और मेरे
अजन्मे शब्दों संग साथ देती है घडी सारी रात
जान से प्यारी भूरो भैंस दिखती है किनारे से
ध्यान खींचने के जतन में साँसें उखड जाती हैं
बोलने की कोशिश में निकले अस्फुट शब्द भी
पड़ते ही कानों में पहले कान हिले फिर आँख
मिलना नज़रों का जन्म दे गया कुछ बूंदों को
अनकहे होने लगी बात जो न सुन पाया कोई
आज जाना अविरल बहते पानी की भाषा को
पत्नी संग बीता जीवन बात आज भी बाकी है
निष्कासित से जीवन ने वो मौका भी दे डाला
करी अब तारीफ.. आँखों आँखों बात कर लेता
सकुचाई शरमाई कुछ घबराई अर्धांगिनी मेरी
कैसे न हो..आदत ही कहाँ पड़ने दी ऐसी मैंने
उहापोह-भावना का आवेग और शब्द साफ़ हैं
झर-झर गिरते आँसू.. हमारे जकड़े हाथों पर
मेरे हाथों का ठंडापन तडपा गया अब उसको.
ठिठकी हुई पुतलियों ने जता दिया सब कुछ..
दिख रहीं दो लाशें खड़ी और पड़ी अब एक साथ
फिर से जाना अविरल बहते पानी की भाषा को !!
_____जोगेंद्र सिंह ( 22 अप्रैल 2010___07:30 pm )
(( Follow me on facebook >>> http://www.facebook.com/profile.php?id=100000906045711&ref=profile# ))
जीवन भर न हुआ अब पड़ा हूँ आश्रित उनके
लकवाग्रस्त सी लगती अब आत्मा भी है मेरी
आने-जाने वालों की अब लगी है रेलम-पेलम
दो बात सुना चल देते हैं गीत अपने गा-गाकर
दर्द घटा या बढ़ा मर्म इसका यहाँ जानेगा कौन
घूमता हूँ अब भी गाँव में पहले ही की तरह से
हो आता हूँ हर जगह.. रह जाता है पीछे शरीर
मन कहाँ माध्यम चाहे घूम आता यूँही कहीं
नाई की छोटी दूकान हो या हो कल्लू हलवाई
टूट जाते दिवा स्वप्न चारपाई की चर-चर से
कुछ कहने की आस में खाँस के रह जाता हूँ
रात बात होती है.. बीच दीवार घडी और मेरे
अजन्मे शब्दों संग साथ देती है घडी सारी रात
जान से प्यारी भूरो भैंस दिखती है किनारे से
ध्यान खींचने के जतन में साँसें उखड जाती हैं
बोलने की कोशिश में निकले अस्फुट शब्द भी
पड़ते ही कानों में पहले कान हिले फिर आँख
मिलना नज़रों का जन्म दे गया कुछ बूंदों को
अनकहे होने लगी बात जो न सुन पाया कोई
आज जाना अविरल बहते पानी की भाषा को
पत्नी संग बीता जीवन बात आज भी बाकी है
निष्कासित से जीवन ने वो मौका भी दे डाला
करी अब तारीफ.. आँखों आँखों बात कर लेता
सकुचाई शरमाई कुछ घबराई अर्धांगिनी मेरी
कैसे न हो..आदत ही कहाँ पड़ने दी ऐसी मैंने
उहापोह-भावना का आवेग और शब्द साफ़ हैं
झर-झर गिरते आँसू.. हमारे जकड़े हाथों पर
मेरे हाथों का ठंडापन तडपा गया अब उसको.
ठिठकी हुई पुतलियों ने जता दिया सब कुछ..
दिख रहीं दो लाशें खड़ी और पड़ी अब एक साथ
फिर से जाना अविरल बहते पानी की भाषा को !!
_____जोगेंद्र सिंह ( 22 अप्रैल 2010___07:30 pm )
(( Follow me on facebook >>> http://www.facebook.com/profile.php?id=100000906045711&ref=profile# ))
Comments
15 Responses to “अनकही बातें...”
Jogi,
Well done. the story knitted is really heart touching.
very nice........<3
thank you ◊▬►► Rakesh...
thank you ◊▬►► Aparna ji...
Very well written !
बहुत खूब जोगेन्द्र जी
बधाई!!!
प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
www.merachintan.blogspot.com
thank you ◊▬►► Sohan...
◊▬►► प्रतिबिम्ब ji aapka bahut aabhar...
The essence of human condition is described in a realistic yet poetic way.Thanks for tagging me .
jogendra
really toching... khuli aankhon se jeevan ka ant hote dekha.... pehli baar.. bahut khoob Jogi ji bahut khoob!!!
आओ उदासियों
मेरे गिर्द अपने हाथ थाम
एक गोल घेरा बना लो
मुझे सीमा चाहिए है
पिंजरे का तोता उडान का सपना भूल चुका!
◊▬►► Denen ji i'm very thankful to for comming here...
◊▬►► Jiya thanx to you dost...
◊▬►► प्रकृति दी !! आप की ये पांच लाइनें बेहद खुबसूरत हैं...
Very touchy one Singh, btw I liked ur Blog. Thnx
बहुत अच्छे, जोगिन्दर सिंह जी. आपके भाव सूक्ष्म मनोभावना को व्यक्त करते हैं. कुछ समय पहले ही मैंने अपने माता-पिता को खोया है और उनके जाने से पहले के कुछ वर्षों में उनके मनोभाव कुछ इसी प्रकार के थे. आपका काव्य पढ़ कर अच्छा लगा कि कोई तो बुजुर्गों की भावना को काव्य में ढाल रहा है. साधुवाद. बधाई.
◊▬►► Agni.. welcome my friend.. mujhe laga Californiya se mere blog tak ka path kuchh jyaada hi lamba ho gaya tha... dil ko achchha laga tumhen yahaan dekh kar...
◊▬►► Indogenius.. आपका नाम किसी कंपनी जैसा लग रहा है ! शायद अपनी कंपनी के नाम वाले अकाउंट का इस्तेमाल हो रहा है दोस्त !
इस कविता को लिखते समय Mr. शमशाद जी की कहानी मन में थी... उसी से मुझे इसे लिखने की प्रेरणा मिली... धन्यवाद...
एक तस्वीर, कविता के कैमरे से ?
जी ◊▬►► विनय जी आपने ठीक कहा... कविता भी अपने आप में केमरे की तरह से जीवन को क्लिक करती है...
Post a Comment
Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।
▬● (my business sites..)
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://web-acu.com/
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://acu5.weebly.com/
.