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पसरने लगा चाँद आकाश में रजनी के संग !
हो रही विस्तारित चाँदनी चहुँ दिशा ओर !
वन उपवन और क्या ही गली कूंचे हर ओर !
हर रोज़ आता चाँद ले अपना उल्लासित मन !
निकली चाँदनी आई है अब धरती भ्रमण पर !
देख रही रक्त रंजित दीवारें वैसे ही गली कूंचे !
सोच रही चाँदनी सदियों से यही कहानी है !
पहुँच रहा सन्देश यही उसके मीत चाँद तक !
हो स्तब्ध निशब्द खड़ा चाँद अपने पथ पर !
समझ ना पाया क्यूँ जाती छोड़ उसे उस ओर !
क्या है नाता मध्य प्राण प्रिया और इस धरती के !
बेखबर इस सोच से विचार रही चाँदनी ज़मीं पर !
हर तरफ छूटे हुए रक्तिम भग्नावशेष कुकृत्यों के !
वहाँ बेखबर चाँद मना रहा ऊपर पूनो का उत्सव !
दहलीज़ पे नीचे धरती पर.. गूँज रही सिसकियाँ !
रो रही ज़मीं पर इंसानियत धर चाँदनी का रूप !
दूजी ओर चाँद रूपी मानुष मना रहा उपलब्धियाँ !
रात भर बिखरी कराहटें रुदन के साथ घुली हुई !
कौन सुनेगा मजबूर उस मानुष के सीने का दर्द !
भूख से बिलखता तड़पता कलेजे का टुकड़ा उसका !
बिन चाँदनी के रूप धरा दूजा अमावस का चाँद ने !
अमावस रख गयी अपना काला कफ़न शहर पर !
लौट गयी बेबस चाँदनी छोड़ गयी कराहें पीछे !
और तारों संग चाँद पूनो मना रहा..बिन चाँदनी !
सुबह आई चुपके से.. किसी को खबर नहीं हुई !
शोर-गुल.. चीख-पुकार में.. जाने कब सरक गयी !
खड़ा हूँ किनारे..आँखें बंद..होश गुम अब मेरे भी !
मैं "जोगी" क्या सोच रहा कैसे बटाऊँ हाथ उनका !
अकेला चना कैसे झोंके भाड़.. भून्जूं कैसे इनको !
दमकी सहसा किरण उम्मीद की चाहे अकेला हूँ !
आस न छोडूंगा एकला चलो रे और कब उतारूंगा मन में ?
__________जोगेंद्र सिंह ( 12 अप्रैल 2010 ___ 12:20 pm )
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Comments
6 Responses to “एकला चलो रे.. !!”
Jogi ji
kavita bahut sunder aur marmsparshi hai.
घिर रही है साँझ
हो रहा है समय
घर कर ले उदासी।
तौल अपने पंख, सारस दूर के
इस देश में तू है प्रवासी।
रात! तारे हों न हों
रव हीनता को सघनतर कर दे अंधेरा
तू अदीन! लिये हिय में
चित्र ज्योति प्रदेश का
करना जहाँ तुझको सवेरा।
थिर गयी जो लहर, वह सो जाय
तीर-तरु का बिंब भी अव्यक्त में खो जाय
मेघ मरु मारुत मरण- अब आय जो सो आय!
कर नमन बीते दिवस को, धीर!
दे उसी को सौंप
यह अवसाद का लघु पल
निकल चल! सारस अकेले!
Plz visit blogs:-http://avhivakti-dil-ki.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html
n chk its address http://www.orkut.co.in/Main#CommMsgs?cmm=777796&tid=5459451844897527162&start=1
Boby bhai.. thanx to you..
maine apke diye link par jakar us jhoothe insaan Sidharth ko jo likha hai, krapaya vapas jakar dekh lijiyega..
jane dijiye main use yahin copy past kar deta hun..
◊▬►► भैय्या सिद्धार्थ..!!!
जीवन भर चोरी की रचनाओं पर ही गुज़ारा करोगे क्या..? पहले साजिद की कविता चुरायी और अब मेरी...
तुम्हारी यह कविता जो तुमने Tuesday April 13, 2010 को चढ़ाई है..
यह मेरी लिखी कविता है पुत्तर..
मेरे फेसबुक अकाउंट में 11 अप्रैल 2010 एवं मेरे ब्लॉग में 20 अप्रैल 2010 के दिन चढ़ाई गयी है..
दोनों का लिंक दे रहा हूँ.. जो भी पढने के शौक़ीन हैं वे मेरे लिंक ज़रूर देखें..
http://www.facebook.com/profile.php?id=100000906045711&v=photos#!/photo.php?pid=56648&id=१०००००९०६०४५७११
http://jogendrasingh.blogspot.com/2010/04/blog-post_9269.html?showComment=1273839892338#comment-c3719474934896020805
और सिद्धार्थ मेरी रचना का copyright भी है.. अगर कार्यवाही से बचना चाहते हो तो ज़वाब तो चाहिए ही साथ ही इसे अपने चोर ब्लॉग से हटा भी देना..
◊▬►► जोगेंद्र सिंह..
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us chor ka link fir se de raha hun...
http://avhivakti-dil-ki.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html
Sorry sir maine galti ki hai aur is kavita ko apne blog se hata diya hai....mujhe maaf kar dijiye.....
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Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।
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