( यह तस्वीर मेरी क्लिक की हुई है... और इस कविता में अमन, प्यार और शांति के बिगुल की तरह शंख है... और पास ही में गहरे रंग का छोटा सा केंकड़ा बुराइयों के छोटे होते जाने का प्रतीक है...)
एक नयी सोच.. नयी उछाल के साथ,
जात-पाँत.. धरम-कटघरे,
छोड़ दुनियावी बातों को,
आओ बनायें जहान एक अपना सा,
थूका-थाकी.. झगडा.. गुल-गपाड़ा हैं यही सब,
हिस्सा इस दुनिया का..
हो न जाएँ लुप्त.. नज़ारे प्यार के,
आओ गीत प्यार के गा लें हम,
ना धरम होगा.. और ना होंगे उपासक उसके,
मिल जुल कर देखो कैसे.. उदय सवेरा कर लेंगे,
एक नया गीत.. नयी सोच.. नयी उछाल के साथ,
देखो होता शायद ऐसा ही होगा स्वर्ग कहीं,
कि आओ गा लें हम गीत प्यार का.
एक नयी सोच.. नयी उछाल के साथ...
__________जोगेंद्र सिंह ( 24 मार्च 2010 ___ 01:18am )
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नयी सोच.. नयी उछाल के साथ...
Thursday, 15 April 2010
- By Unknown
नयी सोच.. नयी उछाल के साथ...
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कविता कोष
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2 Responses to “नयी सोच.. नयी उछाल के साथ...”
The pic and the poem is really beautiful. The poet easily conveys the deep rooted feelings of all human hearts.
Hats off to him.
thanx @ Aparna for your appreciation...
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